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मुंबई: विधानसभा चुनाव में हार के बाद उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर यू-टर्न लेते हुए हिंदुत्व की राह पकड़ी है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार, दादर के हनुमान मंदिर तोड़ने के विरोध के बाद उन्होंने वीर सावरकर को भारतरत्न देने की मांग फिर से दोहराई है। उद्धव ठाकरे राहुल गांधी को नसीहत भी दे रहे हैं, जो कांग्रेस को चुभ सकती है। पिछले 6 दिसंबर को एमएलसी मिलिंद नार्वेकर के बाबरी विध्वंस वाले पोस्ट पर भी महाविकास अघाड़ी में घमासान मचा था। अबू आजमी ने इस पर आपत्ति जताते हुए एमवीए से अलग होने का ऐलान कर दिया था। चर्चा है कि उद्धव ठाकरे बीएमसी चुनाव से पहले एमवीए से पल्ला झाड़ने के लिए प्लॉट तैयार कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में यह संभावना जताई जा रही है कि बीएमसी चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) हिंदुत्व से लैस होकर कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ेगी।
पांच साल में पहली बार राहुल गांधी को दी सीधी नसीहत
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने संसद में बहस के दौरान स्वातंत्र्यवीर सावरकर को लेकर तीखी टिप्पणी की थी। राहुल गांधी ने वीर सावरकर को मनुवादी बताते हुए मनुस्मृति की आलोचना की थी। वह पहले भी कई बार सावरकर को देशद्रोही बता चुके हैं। मैं सावरकर नहीं हूं, माफी नहीं मांगूंगा वाला बयान दे चुके हैं। राहुल गांधी के इस बयान के बाद संसद से महाराष्ट्र तक तीखी प्रतिक्रिया हुई। बहस के बीच शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया उद्धव ठाकरे ने नागपुर में सीएम देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की। मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा कि अब उन्हें वीर सावरकर को लेकर रोना बंद कर देना चाहिए। पांच साल में यह पहला मौका था, जब उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी को सीधे तौर पर संबोधित किया था। इससे पहले पार्टी के नेता सावरकर के मुद्दे पर कांग्रेस की आलोचना से बच रहे थे।ठाकरे राज में हुआ था नमाज वर्सेज हनुमान चालीसा विवाद
हिंदुत्व पर वापसी संकेत उद्धव ठाकरे ने चुनाव हारने के बाद देने शुरू कर दिए गए। जब रेलवे की ओर से मुंबई के दादर स्टेशन के बाहर स्थित 80 साल पुराने हनुमान मंदिर को ध्वस्त करने का नोटिस दिया गया, तब यूबीटी ने कड़ा विरोध दर्ज कराया। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे खुद ही दल-बल के साथ हनुमान मंदिर पहुंचे और महाआरती की। बता दें कि उद्धव ठाकरे के सीएम कार्यकाल के दौरान महाराष्ट्र में अजान वर्सेज हनुमान चालीसा के विवाद ने तूल पकड़ा था। तब उन्होंने बीजेपी नेताओं की सड़क पर होने वाली महाआरती की आलोचना की थी। इसके बाद ही उन पर सत्ता के लिए हिंदुत्व छोड़ने के आरोप लगे थे। विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। फिर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के लिए मोदी सरकार पर हमला किया और पड़ोसी देश में हस्तक्षेप की मांग की। अब सावरकर को भारतरत्न देने की मांग कर स्टैंड बदलने के संकेत दे दिए।विधानसभा चुनाव में उद्धव को हुआ वोटों का भारी नुकसान
उद्धव ठाकरे ने अचानक हिंदुत्व को लेकर यू-टर्न नहीं लिया। विधानसभा चुनाव में उद्धव सेना को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। यूबीटी की न सिर्फ उनकी सीटें कम हुईं बल्कि वोटों में भारी कमी आई। महाविकास अघाड़ी के साथ ही चुनाव लड़ी यूबीटी को 2024 के लोकसभा चुनाव में 9 सीटें और 16.52 प्रतिशत वोट मिले थे। 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उद्धव सेना को सिर्फ 9.96 प्रतिशत वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी शिंदे सेना को 12.38 फीसदी वोट मिला। शिंदे सेना को चुनाव में 57 सीटें मिली थीं। लोकसभा चुनाव में भी शिंदे सेना ने 12.95 प्रतिशत वोट मिले थे। हिंदुत्व के एजेंडे पर टिकी बीजेपी एक हैं तो सेफ हैं और बंटोगे तो कटोगे के नारे के साथ 26.77 फीसदी वोट पर टिकी रही। लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को महाराष्ट्र में 26.18 प्रतिशत वोट मिले थे। शिंदे सेना और बीजेपी का वोट बैंक इधर-उधर नहीं खिसका बल्कि इसमें मामूली बढ़त ही हुई। नतीजों में यह बड़ा बदलाव लेकर आया।कांग्रेस के साथ बीएमसी चुनाव लड़ने पर संशय
मुंबई में भी विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी-शिवसेना का पलड़ा भारी रहा। मंत्री पद के लिए तकरार के बाद भी एकनाथ शिंदे पहले ही बीजेपी के साथ मिलकर बीएमसी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। अगर विधानसभा के नतीजे बीएमसी चुनाव में दोहराए गए तो उद्धव सेना अपने गढ़ में खत्म हो जाएगी। दूसरी ओर, यूबीटी में कांग्रेस के रवैये से नाराजगी है। खुद उद्धव ठाकरे विधानसभा चुनाव में सीएम का चेहरा घोषित नहीं किए जाने से नाराज हैं। इस कारण पार्टी के एक धड़े ने हार के बाद कांग्रेस से किनारा करने की राय रखी। कांग्रेस के साथ बीएमसी चुनाव में जाती है तो यूबीटी की छवि नहीं बदलेगी और इसका फायदा सीधे तौर से बीजेपी-शिवसेना को होगा। माना जा रहा है कि इस कारण उद्धव ठाकरे एक बार फिर हिंदुत्व और सावरकर को लेकर दोबारा मैदान में कूदे।
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